मित्रता व सम्बन्धों का आइना
संसार के सभी मनुष्य अपने जीवन में अनेक प्रकार के पारिवारिक बन्धनों से बंधा हुआ होता है और यह पारिवारिक बन्धन ही मनुष्य के सम्पूर्ण जीवन की आधारशिला माने जाते हैं, क्योंकि मानवीय जीवन में परिवार और सम्बन्ध अत्यधिक महत्व रखते हैं। मनुष्य के जीवन को तीन मुख्य आश्रमों में विभाजित किया गया है-
ब्रह्मचर्य आश्रम - इसमें मनुष्य विद्यार्थी जीवन व्यतीत करता है।
गृहस्थ आश्रम - इसमें रहकर मनुष्य अनेक पारिवारिक बन्धनों से बंधता है।
वानप्रस्थ आश्रम - इसमें मनुष्य उम्र के अन्तिम पड़ाव वृद्धावस्था में जीवन व्यतीत करते मोक्ष करते हुए मरणोपरांत प्राप्त करने की प्रबल जिज्ञासा रखता है।
इनमें सबसे महत्वपूर्ण "गृहस्थ आश्रम" इसमें मनुष्य पारिवारिक बन्धनों का निर्वाह करते हुए जीवन के अनेक प्रकार के दुःख व सुख की अनुभूति करता है। सर्वविदित है कि पारिवारिक सम्बन्ध मनुष्य को स्वयं के परिवार से ही मिलते हैं। परन्तु एक सम्बन्ध ऐसा भी है जो मनुष्य को अंजान परिवार से मिलता है, लेकिन यदि उस रिश्ते के महत्व को गहराई से समझा जाये तो वह अन्य पारिवारिक रिश्तों से भी अधिक महत्वपूर्ण साबित होता है। वह है "मित्रता" । जब दो मनुष्यों में परस्पर मित्रता होती है तो वह मित्रता केवल दो व्यक्तियों के बीच नहीं वरन अनेक परिवार के बीच होती है। उस एक मित्रता से दो परिवारों में अनेक प्रकार के रिश्ते जुड़ते हैं और प्रत्येक योग्य व सच्चे रिश्ते मित्रता के आधार पर ही जुड़ते हैं। मित्रता एक ऐसा रिश्ता है जो किसी भी स्वार्थ से परे होता है। इस रिश्ते में परस्पर सहयोग, एकता और प्रेम की भावना होती है। यहाँ एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि किसी भी मनुष्य को सच्चा मित्र श्रेष्ठ कमों द्वारा ही मिलता है, जिस प्रकार श्रेष्ठ कर्मों द्वारा मोक्ष प्राप्ति का मार्ग अवतरित होता है, उसी प्रकार श्रेष्ठ कर्मों से ही सच्ची मित्रता प्राप्ति का भी मार्ग अवतरित होता है। परन्तु विचारणीय विषय है कि आज की मित्रता, मित्रता नहीं वरन् परस्पर स्वार्थ सिद्ध करने की नीति मात्र रह गयी है। आज लोगों ने मित्रता को अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए छल, कपट और द्वेष आदि में बदल दिया है। आज के मित्र अधिकांश मित्रता और सम्बन्धों को अमीरी और गरीबी के साथ आंकते हैं। यदि एक मित्र अपने मित्र व उसके परिवार के संकट के समय उसके साथ खड़ा ही हो जाता है । वही उसकी सच्ची मित्रता का उदाहरण है। मित्रता की भी कोई उम्र, सीमा निर्धारित नहीं होती है। एक मित्र अपने मित्र के जीवन में अनेक रिश्तों का निर्वाह कर सकता है। उसके जीवन का मार्ग दर्शक बनकर।
Dr Munna Lal Bhartiya
Social Worker
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