तथागत गौतम बुद्ध | मानवता के विकास के लिए भगवान बुद्ध के उपदेश

मानवता के विकास के लिए भगवान बुद्ध के उपदेश

कार्ल मार्क्स द्वारा उठाये गये मूल्यों पर बुद्ध के क्या विचार हैं? कार्ल मार्क्स गरीबों के शोषण से अपना विचार प्रारम्भ करते हैं। बिल्कुल यही प्रश्न बुद्ध ने उठाये थे। भगवान बुद्ध ने कहा था-"दुनियाँ में दु:ख ही दु:ख है। बुद्ध ने 'शोषण शब्द का इस्तेमाल नहीं किया, पर अपने धर्म की नींव मानव के दु:ख पर रखी। 'दु:ख शब्द की व्याख्या अनेक प्रकार से की गयी है। कुछ लोगों ने इसकी व्याख्या जन्म और मरण के चक्र से की है। बौद्ध साहित्य में अनेक स्थानों पर 'दु:ख' शब्द गरीबी के आशय में प्रयुक्त हुआ है। इस तरह हम पाते हैं कि जहाँ तक नींव का प्रश्न है, दोनों समान हैं। इसलिए तह तक जाने के लिए बौद्ध लोगों को कार्ल मार्क्स तक जाने की कोई आवश्यकता नहीं है। 


इस नींव को बुद्ध ने पहले ही काफी मजबूती से डाल रखा है। यहीं से भगवान बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश "धम्मचक्र प्रवर्तन सूत्र" का प्रारम्भ किया। जो लोग कार्ल मार्क्स से आकर्षित हुए हैं, वे इस 'सूत्र' को पढ़कर देखें कि भगवान् बुद्ध ने क्या कहा है ? बुद्ध ने अपने धम्म की नींव ईश्वर, आत्मा या किसी दैवीय आधार पर नहीं रखी है। उन्होंने अपनी उँगली जीवन के वास्तविक तथ्य पर रखी-"लोग कष्ट में जीवन जी रहे हैं। जो कुछ कम्युनिज्म में है, वह पर्याप्त मात्रा में बौद्ध धम्म में है ।  बुद्ध मार्क्स के पैदा होने के 2400 वर्ष पूर्व ही ये बातें कह गये थे।


जहाँ तक सम्पत्ति का सवाल है, आप पायेंगे कि कार्ल मार्क्स और बुद्ध के सिद्धान्तों में बहुत समानता है। कार्ल मार्क्स ने  कहा कि शोषण को रोकने के लिए सारी सम्पत्ति जमीन, कारखाने आदि का मालिक राज्य हो ताकि कोई निजी मालिक बीच में आकर मजदूरों के लाभ पर अपना अधिकार न स्थापित कर सके। बौद्ध भिक्षु संघ को देखें कि बुद्ध ने बौद्ध भिक्षुओं के लिए क्या नियम बनाये हैं?


बुद्ध के नियमानुसार "कोई भी बौद्ध भिक्षु निजी सम्पत्ति नहीं रखेगा। कुछ अपवादों के अलावा यह देखने में भी आता है कि बौद्ध भिक्षुओं के पास कोई निजी सम्पत्ति नहीं है। दरअसल संघ के लिए बुद्ध के नियम रूस में कम्युनिज्म के नियमों से ज्यादा कठिन हैं।


संघ बनाने के पीछे बुद्ध का उद्देश्य क्या था? यदि हम इतिहास को देखें तो ज्ञात होता है कि जिस समय बुद्ध अपने धम्म का प्रसार कर रहे थे, उस समय 'परिव्राजक' हुआ करते थे । 'परिव्राजक' शब्द का आशय है- ऐसा व्यक्ति जिसका परिवार छूट गया हो। सम्भवत: आर्यों के काल में उनके कबीले आपस में लड़ा करते थे। उनमें से कुछ घर-द्वार विहीन होकर इधर-उधर भटकते थे । बुद्ध ने इन परिव्राजकों को संगठित किया और इन  परिव्राजकों को जीवन के नियम समझाये ।


बुद्ध अपने सिद्धान्तों के अनुपालन के लिए समझाने-बुझाने नैतिक शिक्षा और स्नेह का सहारा लेते हैं। वे अपने विरोधियों को प्रेम से जीतते हैं, शक्ति से नहीं । बुद्ध कभी भी हिंसा की अनुमति नहीं देते। आप अपने सिद्धान्तों पर चलिये, अपने हिसाब से काम कीजिए । यह बुद्ध की बतायी हुई राह है।सबसे अहम बात जो बुद्ध ने दुनियाँ को बताई कि हम तब तक लोगों में कोई परिवर्तन नहीं ला सकते, जब तक कि हम लोगों की मानसिकता को परिवर्तित न कर दें। यदि मानसिक परिवर्तन हो गया, यदि कम्युनिस्ट व्यवस्था को लोगों ने प्रेमपूर्वक और ईमानदारी से अपना लिया तो यह एक स्थायी विचार और व्यवस्था होगी । लोगों को सुव्यवस्थित रखने के लिए किसी सिपाही या पुलिस की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।


बुद्ध आपको और आपके चिंतन को ऐसा ऊर्जावान बना देते हैं कि आप स्वयं अपने प्रहरी बन जाते हैं। दुनियाँ की सबसे बड़ी समस्या दु:ख है और दु:ख का निवारण बौद्ध धम्म के माध्यम से बेहतर ढंग से हो सकता है।


डॉ मुन्नालाल भारतीय 
     समाज सेवी





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