मानव अधिकारों के पालन में ही निहित संपूर्ण समाज का विकास
भारतीय संविधान के अंतर्गत मानव के संपूर्ण विकास हेतु मानव अधिकारों की व्यवस्था की गई है मानव समाज में जन्म लेता है तो मानव अपने परिवारिक जीवन में आजीवन रीति रिवाज संस्कार तथा परंपराओं का निर्वाह करता है इन सभी परिवारिक तत्वों से ही मानव को अच्छे और बुरे का ज्ञान प्राप्त होता है तथा मानव अपने पारिवारिक उत्तरदायित्व को समझता है इसी प्रकार समाज के विकास में ही मानव का पूर्ण उत्तर दायित्व बनता है परंतु समाज का विकास पारिवारिक समस्याओं से ना होकर, सामाजिक अधिकार, स्वतंत्रता और समानता का अधिकार ,राजनीतिक अधिकार की जागरूकता राष्ट्रप्रेम की भावना के द्वारा समाज का पूर्ण विकास संभव है मानव समाज के संपूर्ण विकास हेतु संविधान में अनुच्छेदों के अंतर्गत मानव अधिकारों की घोषणा की है।
संसार के समस्त प्राणियों ने अधिकार की दृष्टि से संसार में स्वतंत्र रूप से जन्म लिया है। सभी प्राणियों को एक दूसरे के साथ प्रेम व सम्मान भावन से पेश आना चाहिए। मानव अधिकारों के अंतर्गत प्रत्येक व्यक्ति को जीवन स्वाधीनता का पूर्ण अधिकार प्राप्त है
कानून सभी व्यक्तियों के लिए बराबर है। कोई भी व्यक्ति जिस किसी भी देश या राज्य का रहने वाला हो उस व्यक्ति को उस देश या राज्य के क्षेत्रीय व राजनीतिक अधिकार के आधार पर कोई भेदभाव नही किया जा सकता।
नैतिक अधिकार, वैधानिक अधिकार, विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार,धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, न्याय प्राप्ति का अधिकार ,शिक्षा का अधिकार, राजनीतिक अधिकार ,मत देने का अधिकार ,निर्वाचित होने का अधिकार ,राजकीय पद पाने का अधिकार, संगठन बनाने की स्वतंत्रता का अधिकार आदि यह सब मानव अधिकार है यह जन सशक्तिकरण का मार्ग प्रशस्त करते हैं। प्रत्येक व्यक्ति समाज की एक प्रभावशाली इकाई है, मानव विकास के द्वारा ही समाज का संपूर्ण विकास संभव है।
अधिकार नागरिकों वह आवश्यक की मांग है जिसे समाज, राज्य तथा कानून नैतिक मान्यता देते हैं। परंतु मनुष्य की मांग ऐसी हों जिसमें उसके स्वयं के हित के साथ साथ समाज का हित भी निहित हो। स्वतंत्रता अत्यंत आवश्यक है समानता का उपभोग करने के लिए। लोकहित के आदर्शों को प्राप्त करने के लिए धनी और निर्धन के बीच की खाई को कम करना राज्य का प्रमुख कर्तव्य है।
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