आखिर कब बनेगा समता मूलक समाज
बाबा साहेब के समता मूलक समाज का स्वप्न वास्तव में कब पूरा होगा।
भारत रत्न संविधान निर्माता डा० भीमराव अम्बेड़कर विश्व के महानविद्वान, एक महान राजनीतिज्ञ, शिखस्थ अर्थशास्त्री लेखक तथा महान क्रांतिकारी थे। बाबा साहब आज विश्वविख्यात शख्सियत हैं उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन मानव जाति के उत्थान के लिए समर्पित किया। बाबा साहब ने अपने जीवन में अछूत होने की वजह से अपमान, तिरस्कार उपेक्षा, बहिष्कार तथा हीनता बोध का सामना किया।
इतना सब कुछ झेलकर उन्होंने अछूत, दबे-कुचले व शोषित वर्ग के लिए महत्वपूर्ण कार्य किये तथा उनका सबसे महत्वपूर्ण कार्य था कि भारत के नागरिकों के जीवन को एक नई दिशा
प्रदान करने के लिए तथा देश को उन्नति के मार्ग पर प्रशस्त करने के लिए भारतीय संविधान का निर्माण किया। वह भारत के पहले कानून मंत्री बने। उन्होंने मजदूरों के लिए कार्य किये बाबा साहब ने श्रमिकों के अधिकारों को ध्यान में रखते हुए सन् 1936 में इन्डिपेन्डेन्ट लेबर पार्टी की स्थापना की इस पार्टी का कार्य मजदूर किसान तथा निम्नवर्ग के लोगों के अधिकारों के लिए संघर्ष करना था।
रिजर्व बैंक की परिकल्पना और स्थापना में अम्बेड़कर का महत्वपूर्ण योगदान है। बाबा साहब जातिवाद के कारण तिरस्कार सहते हुए भी हिन्दू धर्म में विशेष लगाव रखते थे किन्तु कुछ मनुवादी प्रभुत्वधारी हिन्दू अछूतों के प्रति अपनी संकीर्ण मानसिकता को बदलना नहीं चाहते थे हिन्दू धर्म की इस स्थिति को देखते हुए बाबा साहब ने हिन्दू धर्म को त्यागने का निर्णय लिया और 1935 में नासिक के येवला अधिवेशन में अपने धर्मान्तरण की घोषणा की तथा उन्होंने विश्वस्तरीय धर्म बौद्ध धर्म को 14 अक्टूबर सन् 1956 में धारण किया।
बाबा साहब के श्रेष्ठ कार्य व अदभुत प्रतिभा के कारण विश्व प्रसिद्ध कोलंबिया यूनिवर्सिटी ने अपने सम्मान के रूप में सन् 2011 में अपने 250 वें स्थापना दिवस के अवसर पर अपने 100 श्रेष्ठ प्रतिभाशाली विद्यार्थियों की सूची में डॉ० अम्बेड़कर को प्रथम स्थान दिया हैं। बाबा साहब अपने आप में स्वयं एक सत्य थे। बाबा साहब के कार्य तथा संघर्ष ने भारतीय समाज की तस्वीर को बदला। और यही कारण है कि राष्ट्रहित में अम्बेड़कर के विचार कल भी प्रासंगिक थे आज भी प्रासंगिक है और सदैव प्रासंगिक रहेगें।
बाबा साहब ने भले ही निम्न वर्ग, शोषित व अछूतों के लिए कड़ा संघर्ष करते हुए उन्हें सम्मान का जीवन दिया परन्तु आज भी देश के आबादी के अधिकांशत हिस्सों में निम्न वर्ग व शोषित वर्ग अपने अधिकारों से वंचित हैं उन्हें अब भी वह सम्मान नहीं दिया जाता है जो उन्हें मिलना चाहिए आज भी कुछ हिस्सों में ऐसे घटनाक्रम देखने को मिलते हैं जैसे-सार्वजनिक स्थल से पानी न भरने देना, मन्दिरों में अछूतों के प्रवेश वर्जित, बारात न चढ़ने देना आदि। इस प्रकार कुछ लोगों की मानसिकता निम्न वर्ग के प्रति आज भी संकीर्ण है।
आखिर संविधान के अनुरूप समाज कब बनेगा? और जब वर्ण व्यवस्था से उपजी यह जाति व्यवस्था खत्म होगी तब भारत को सोने की चिड़िया तो क्या, कोहिनूर हीरा बनने में भी समय नहीं लगेगा? और 'इसके लिए जरूरी है कि भारतीय जनमानस को अपनी ऊँच नीच, जाति प्रथा की संकीर्ण विचाराधारा की मानसिकता को बदलना होगा।
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Good
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