वास्तव में महिला सशक्तिकरण आज भी चुनौती है
आज भारतीय नारी पुरुषों के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर ही नहीं चल रही हैं। अपितु अनेक क्षेत्रों में वह पुरुषों से कहीं आगे हैं, आर्थिक रूप से मजबूत हो रही हैं। परन्तु विडम्बना यह है कि महिलाएँ जितना आगे बढ़ रही हैं, समाज के विकास मे अपना योगदान दे रही हैं, उतनी ही महिलाएँ अत्याचार का भी शिकार हो रही हैं और इसका कारण यह है कि महिलाओं के प्रति आज भी संकीर्ण मानसिकता व्याप्त है।
आये दिन महिलाएं बलात्कार व शोषण आदि का शिकार हो रही हैं। महिलाओं को जिन्दा जलाया जा रहा है । एक शिक्षित महिला भी सुरक्षित नहीं है वह भी समाज की इस दुर्दशा के चलते अपने आत्म सम्मान की रक्षा करने में असमर्थ हैं। महिलाओं के लिए अनेक प्रकार की कानून व्यवस्था व योजनाएं क्रियान्वित हैं लेकिन फिर भी महिलाओं की स्थिति में सुधार नहीं है।
महिला अधिकारों को लेकर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेक प्रावधान स्वीकृत किए गए हैं। 18 दिसम्बर, 1919 को संयुक्त राष्ट्र के महाधिवेशन में स्त्री विरोधी सभी प्रकार के भेदभावों को समाप्त करने हेतु एक संविदा का निर्माण किया गया। इस संविदा में 30 अनुच्छेद निर्धारित किए गए इसकी तैयारी में पाँच वर्षों से अधिक का समय लगा, इस संविदा को 165 राष्ट्रों में स्वीकृति प्रदान की गई।
महिला भेदभाव की समस्या किसी एक देश अथवा समाज में ही नहीं है वरन् यह समस्या अन्य देशों में भी है। वैदिक काल से ही महिलाओं की जीवन शैली में असंख्य उतार-चढ़ाव आते रहे हैं और महिलाओं ने डटकर उसका सामना करते हुए समाज को प्रेरणा दी है। महिलाओं की स्थिति में सुधार करने के लिए सर्वप्रथम पुरुषों की संकीर्ण मानसिकता का समाप्त होना अति आवश्यक है।
समाज का नजरिया बदलना आवश्यक है तभी वास्तव में समृद्ध समाज की तस्वीर बन पाएगी ।
0 Comments