जाटव शब्द के जन्मदाता डॉ मानिक चन्द्र जाटव वीर।

 समाज को गौरव प्रदान करने वाले महान समाज सुधारक जाटव शब्द के जन्मदाता श्रद्धेय डॉ मानिक चंद्र जाटव वीर जी के 123 वे जन्मदिवस पर विशेष




जाटब शब्द के जन्मदाता दादा साहब डॉ० मानिक चन्द्र जाटव वीर का जन्म 11 नवम्बर सन् 1897 ई० आगरा में हुआ था। इनके पिता श्री भोलानाथ जी एक महान समाज सुधारक थे। पिता में समाज सुधार की भावना के गुणों का प्रभाव दादा साहब पर भी पड़ा। जिसके परिणामस्वरूप दादा साहब युवावस्था में ही समाज सेवा व समाज सुधार के कार्य में जुट गये। दादा साहब अत्यन्त साहसी, स्वाभिमानी व कार्यशील क्रान्तिकारी समाज सुधारक थे। दादा साहब जातिवाद के    कट्टर विरोधी थे दादा साहब ने दलित समाज को शिक्षा के महत्व से परिचित कराते हुए उन्हें शिक्षित होकर स्वयं व समाज के सर्वांगीण विकास में योगदान देने हतु जागरुक किया। 


दादा साहब ने शिक्षा के प्रचार - प्रसार तथा समाज से कुरीतियां को समाप्त करने हेतु सन् 1937 में एम०सी०वीर इंस्टीट्यूट की स्थापना की। तत्पश्चात् इस इंस्टीट्यूट के माध्यम से अनेक विद्यालयों तथा छात्रावासों की स्थापना की गयी। जिससे कि समाज के लोगों को शिक्षा के क्षेत्र में और जागृत किया जा सके। दादा साहब को पीड़ितों की सेवा करने तथा अपने समाज व राष्ट्र के प्रति पूर्ण निष्ठा की भावना से प्रभावित होकर तत्कालीन वाइसराय ने सन् 1943 में दादा साहब को रायबहादुर की उपाधि से सम्मानित किया। परन्तु भारतरत्न डॉ० भीमराव आबेडकर द्वारा स्थापित शिड्यूल कास्ट फैडरेशन के आह्वान के कारण सन् 1946 में दादा साहब को सत्याग्रह आन्दोलन में जेल की यात्रा करनी पड़ी। जिसके फलस्वरूप भारत के अन्य दलित नेताओं की तरह आपने भी रायबहादुर की उपाधि को वापस कर दिया । भारतरत्न डॉ० भीमराव आम्बेडकर को 10 मार्च, 1946 में प्रथम बार आगरा में लाने वाले व्यक्ति दादा साहब मानिक चन्द्र वीर ही थे।

आज समाज में जो लोग शिक्षा के प्रति अपने मानव अधिकारों के प्रति जागरुक हो रहे हैं व समाज तथा राष्ट्र के प्रति अपने उत्तरदायित्व को समझने की चेष्ठा कर रहे हैं। उसका श्रेय महान समाज सुधारक दादा साहब डॉ० मानिक चन्द्र जाटव वीर के समाज के लिए त्याग व संघर्ष को ही जाता है। दादा साहब ही समाज के ऐसे प्रथम नागरिक थे, जिन्होंने दलितों के एक वर्ग को समाज में जाटव शब्द देकर समाज को गौरव प्रदान किया


शिक्षा के क्षेत्र में लोगों को जागरुक करने हेतु दादा साहब ने एम०सी०वीर इंस्टीट्यूट की स्थापना की। इस सन्दर्भ में इतने वर्षों में कितनी ही सरकारें बनीं तथा दलितों की राजधानी कहा जाने वाला आगरा से भी अनेक सांसद, विधायक तथा मंत्री सरकार में रहे तथा वर्तमान में भी हैं, परन्तु किसी भी सांसद तथा विधायक ने इस इंस्टीट्यूट को इण्टर कॉलेज तक की मान्यता दिलाना भी उचित नहीं समझा। यह अत्यन्त विचारणीय विषय है कि वर्तमान समय में भी सरकार इस इस्टीट्यूट को इण्टर कालेज तथा डिग्री कॉलेज की मान्यता देना भी उचित नहीं समझ रही है। 


सन् 1937 से यह इंस्टीट्यूट केवल जूनियर हाईस्कूल तक ही सीमित है। जबकि देश के अनेक महापुरुषों के नाम पर देश में स्मारक, इजीनियरिंग कॉलेज तथा मेडीकल कॉलेज बनाये गये। परन्तु जाटव शब्द के जन्मदाता दादा साहब द्वारा स्थापित एम०सी०वीर को इण्टर कॉलेज तथा डिग्री कॉलेज की मान्यता भी नहीं दी जा रही है। यह अत्यन्त विचारणाय व शर्मनाक बात है। आज हमारे समाज व राष्ट्र को उन्नति के पथ पर अग्रसर करने के लिए वर्तमान पीढ़ी के युवा वर्ग को दादा साहब जैसे महान समाज सुधार की भावना तथा राष्ट्र के लिए पूर्ण निष्ठा की भावना से ओत-प्रोत व्यक्तित्व की आवश्यकता है।


लेखक/भवदीय,


(डॉ० मुन्नालाल भारतीय)

समाज सेवी




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