अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष 2022 | International Women's Day

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष



किसी भी देश की प्रगति महिलाओं के योगदान के बिना असंभव है । महिलाएं अपने जीवन में अनेक भूमिका निभाती हैं जैसे मां, बेटी, बहन, बहु, पत्नी आदि पारिवारिक जिम्मेदारियों का निर्वाह करना तो महिलाओं का मूल कर्तव्य है । महिलाओं ने प्राचीन काल से ही पारिवारिक जिम्मेदारियों के साथ-साथ सामाजिक, प्रशासनिक व शासक आदि की जिम्मेदारियों को बहुत ही उत्कृष्टता के साथ पूरा किया है आज भी कर रही हैं ।

बेशक समाज की प्रगति में महिलाओं का योगदान किसी परिचय का मोहताज नहीं है परंतु महिलाओं के अस्तित्व का एक पहलू यह भी है कि एक तरफ महिलाएं उत्पीड़न की भी शिकार होती रही हैं प्राचीन काल में महिलाएं सती प्रथा, पर्दा प्रथा, शोषण आदि कुरीतियों की शिकार होती थी। आज भी महिलाएं असमानता, उत्पीड़न, शारीरिक शोषण, दहेज प्रथा, दहेज मृत्यु आदि जैसी कुरीतियों की शिकार होती हैं, जो कि हमारे समाज के लिए आज भी एक कलंक है। 

महिलाएं सक्षम होते हुए भी इन कुरीतियों की शिकार होने से खुद को नहीं बचा पाती हैं । महिलाओं की विपरीत परिस्थितियों के लिए जागरूकता का अभाव, अशिक्षा, अहम की भावना व संकीर्ण मानसिकता जैसे कारण जिम्मेदार हैं।  महिला व पुरुष के भेदभाव को खत्म करने के लिए श्रेष्ठ प्रयास संविधान निर्माता भारत रत्न बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी ने हिंदू कोड बिल के प्रस्ताव के साथ  किया और भारतीय संविधान में महिलाओं को सभी प्रकार के मूल अधिकार प्रदान किए। क्योंकि बाबा साहब ने अपने जीवन के संघर्ष में यह भी देखा और समझा कि किसी भी देश और समाज का सशक्तिकरण महिलाओं की परिस्थितियों पर महत्वपूर्ण रूप से निर्भर करता है जीवन का आधार बनने वाली महिलाएं ही यदि निम्न दर्जे का जीवन जिएंगी, कुरीतियों का शिकार होंगी तो उस समाज का विकास कभी नहीं हो सकता। 

बाबा साहेब की इस विचारधारा ने महिलाओं के जीवन की दशा और दिशा दोनों को बदला और महिलाओं को एक सम्मान का जीवन दिया। महिलाएं अपने जीवन के सभी अधिकार व कर्तव्य को समझें और उनका सम्मान करें और सामाजिक सशक्तिकरण में व समृद्धशाली राष्ट्र के निर्माण में अपना महत्वपूर्ण योगदान देती रहें।

डॉ मुन्नालाल भारतीय
लेखक

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