महानायक के जन्म दिवस पर विशेष || Ambedkar Jayanti 2022


महानायक के जन्म दिवस पर विशेष (14 – 04 – 2022)



भारतरत्न संविधान निर्माता डॉ भीमराव आंबेडकर जी का जीवन संघर्ष शोषित, पिछड़े व निम्न वर्ग के लिए बहुत ही अनुकरणीय है। भारतीय जन सामाजिक विकास ऑर्गेनाइजेशन के अध्यक्ष डॉ मुन्नालाल भारतीय के अनुसार उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन मानव जाति की एकता व समानता हेतु संघर्ष के लिए समर्पित कर दिया । जानवरों से बदतर जीवन जीने के लिए मजबूर शोषित , दबे-कुचले निम्न वर्ग के लोगों को जगाया, उन्हें जीवन का महत्व समझाया उन्हें अपने अस्तित्व का अहसास कराया उन्हें समाज की मुख्य धारा के साथ जोड़ा और समाज में सम्मान जनक स्थान दिलाया । इस के लिए बाबा साहब ने बहुत मेहनत की । उस समय देश में अंग्रेज़ी शासन था और भारतीय समाज काफी छिन्न - भिन्न की अवस्था में था ऊंच नीच की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था । मानव जाति में असमानता चरम पर फैली हुई थी । ऐसी परिस्थितियों को देखते हुए डॉ आंबेडकर ने निम्न वर्ग के लोगों के लिए मानव अधिकारों की मांग की । उन्होंने बॉम्बे मे अछूत लोगों की एक सभा आयजित करके "अत्यंज संघ" की स्थापना की इस संघ का उद्देश्य निम्न वर्ग को मानवीय अधिकारों के प्रति जागरूक करना व निम्न वर्ग का उत्थान करना था । डॉ आंबेडकर का यह मानना था कि अन्याय उस समय तक नहीं मिटता जब तक पीड़ित स्वयं उठकर न्याय को खत्म करने के लिए मेहनत और प्रयत्न नहीं करता । डॉ आंबेडकर का बुलंद नारा था कि "किसी दास को यह बताओगे कि तुम दास हो , वह शीघ्र ही विद्रोह कर देगा" । डॉ आंबेडकर ने निम्न वर्ग को देश की राजनीतिक व्यवस्था की मुख्य धारा से जोड़ने व निम्न वर्ग को राजनीतिक अधिकार दिलवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । सन् 1930 में भारत की राजनीति काफी उथल-पुथल भरी थी । जिसमें अछूतों और शोषितों का कोई सरोकार नहीं था । तब ब्रिटिश शासन ने  बाबा साहब की ख्याति और योग्यता का सम्मान करते हुए अछूत और शोषित वर्ग का प्रतिनिधित्व करने के लिए डॉ आंबेडकर व रायबहादुर श्रीनिवासन को लंदन में आयोजित गोलमेज परिषद में आने का निमंत्रण दिया। यह बहुत ही ऐतिहासिक क्षण था बाबा साहेब के लिए। वह गोलमेज परिषद में हिस्सा लेने के लिए गए और ब्रिटिश सरकार के समक्ष भारत की भयावह वास्तविक स्थिति को रखा कि भारतीय समाज किस तरह आपस में बटा हुआ है ? कैसे एक मनुष्य दूसरे मनुष्य पर अत्याचार करता है? उन्होंने ब्रिटिश सरकार के सामने प्रश्न रखा कि ब्रिटिश सरकार 150 वर्षों से भारत में शासन कर रही है इस सरकार ने भारत के अछूतों शोषितों के लिए क्या किया ? उनकी दयनीय स्थिति को खत्म करने के लिए कुछ किया ? क्या अछूत और शोषित को कोई अधिकार दिलवाए? बाबा साहब के प्रश्न सुनकर ब्रिटिश प्रतिनिधि एक दूसरे की तरफ देखने लगे । अछूतों के लिए किए गए बाबासाहेब के संघर्ष का यह परिणाम निकला कि बाबा साहब अछूतों और शोषित वर्ग को सभी राजनीतिक अधिकार दिलवाने में सफल रहे और साथ ही ब्रिटिश शासन ने निम्न वर्ग व शोषित वर्ग के प्रति अपनी कार्यप्रणाली को बदला और निम्न व शोषित वर्ग के योग्य लोगों को उनकी योग्यता अनुसार कार्य देना प्रारंभ किया और सेना में भी भर्ती करना प्रारंभ किया । और यहां से निम्न व शोषित वर्ग में क्रांतिकारी सकारात्मक परिवर्तन का बिगुल बजा । भारतीय समाज को नवीन दिशा प्रदान करने के लिए बाबा साहब का व्यक्तित्व और कृतित्व सदैव के लिए प्रेरणास्त्रोत रहेगा । लेकिन विडंबना की बात यह है कि बाबा साहब के इतने संघर्ष के बावजूद आज भी अधिकांश मानसिकता निम्न वर्गों के लिए नहीं बदली है । और भारतीय समाज में गुलामी की मानसिकता ऊच-नीच की भावना आज भी विद्यमान है । यह मानसिकता देश की उन्नति में सबसे बड़ी बाधा है ।

लेखक,
डॉ मुन्नालाल भारतीय
अध्यक्ष (समाजसेवी)
भारतीय जन सामाजिक विकास ऑर्गेनाइजेशन।



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