सर्वविदित है कि गुरु बिना ज्ञान नहीं पाया जा सकता है। क्या सभी मनुष्य गुरु के महत्व को अपने जीवन में श्रेष्ठ स्थान देते हैं, नहीं ऐसा केवल वे ही सदाचारी मनुष्य करते हैं जो अपने गुरु का सम्मान करते हैं, उनके महत्व को समझते हैं। वरन् गुरु सच्चा वह है जो आपको जीवन के प्रत्येक मोड़ पर उचित मार्गदर्शन करें। मनुष्य की प्रथम पाठशाला उसका परिवार होता है और माता-पिता को मनुष्य का सर्वप्रथम गुरू बताया गया है । दूसरा गुरू शिक्षक होता है जो मनुष्य की ज्ञान साधना के मार्ग को प्रशस्त करता है। इस बात को सभी लोग ग्रन्थों, किताबों आदि में पढ़ते है, सत्संग आदि में सुनते है परन्तु कुछेक मनुष्य ही इस बात का अपने जीवन में अनुसरण करते हैं। जो लोग सत्संग में प्रवचन देते हैं, वे भी गुरू के ही समान होते हैं। लेकिन इन गुरूओं का भी अधिकांश मनुष्य सम्मान नहीं करते हैं। क्योंकि इन गुरु के उपदेश सुनते हैं और वापस घर लौटने के बाद पुन: अपने दुराचारी कार्यों में लीन हो जाते हैं । फिर चाहे वह स्त्री हो अथवा पुरुष। अधिकांश देखने को मिल रहा है पति अपने परिवार के पालन - पोषण के लिए दिन-रात मेहनत करता है और अधिकांशत: आज की पत्नियाँ गुरू का सत्संग सुनने जाती हैं। शाम होने पर पति पर काम से निपटकर घर लौटता है और पत्नियाँ भी गुरू के सत्संग से और पति के एक गिलास पानी मांगने पर झल्लाकर उससे कहती हैं कि मैं कितनी थकी हुई और परेशान हूँ और आप पानी मांग रहे हैं। तो जब एक पत्नी अपने पति की एक छोटी से आज्ञा का पालन नहीं कर सकती, तो उससे उस गुरु के सम्मान की क्या अपेक्षा की जा सकती है। लोग मन्दिरों, मस्जिदों आदि में जाकर सिर पटकते हैं, सत्सगों आदि में अनेक प्रकार के खर्च करते हैं। सन्त-महात्माओं आदि पर । लेकिन लोग यह भूल जाते हैं कि जो गुरू आपसे मुँह मांगी रकम ले रहा है, दान-पुण्य के नाम पर, मोक्ष प्राप्ति के उपाय बताने के नाम पर । क्या यह आपके सच्चे गुरू हैं? इस बात को मन रूपी सच्ची आँखों से बिना किसी भेदभाव के विचार करके देखिये । आपका सच्चा गुरू वह है जो कभी भी ठगी आदि नहीं करता है और संसार के सभी दुराचारी कार्यों से दूर रहता है और केवल संसार के हित के कार्यों में लीन रहता है। गुरू की कोई उम्र नहीं होती है। अच्छे गुरू व सन्त का उद्देश्य होता है कि वह संसार के सभी प्राणिमात्र की सेवा कर सकें । क्योंकि यदि संसार का सुख देखने की जरूरत है तो अपने लिए दुनियाँ ही जीती है दूसरों के लिए जीकर देखो तो परमात्मा से मिलने का मार्ग तो खुलेगा ही और यह सुखद अनुभव भी होगा कि हमने संसार में कुछ पाया है।
Dr Munna Lal Bhartiya
Social Worker
Dr Munna Lal Bhartiya
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