संत शिरोमणि गुरु रविदास जी

                संत शिरोमणि गुरु रविदास जी

संत रविदास समाज में अपना एक गरिमामयी स्थान रखते हैं। मानवता की प्रतिभूति संत रविदास का जन्म सन् 1450 ई० में हुआ था। इनके पिता का नाम संतोख दास तथा माता का नाम कर्मा देवी था। संत रविदास के गुरू स्वामी रामानन्द जी थे। सर्वज्ञ है कि संत रविदास अद्भुत महान संत थे। उन्होंने समाज मे व्याप्त बुराईयों एवं कुरीतियों पर प्रतिबन्ध लगवाने में अपना अहम योगदान दिया। वे कभी भी प्रवचन देने के लिए भीड़ जुटाने में विश्वास नहीं करते थे, लेकिन फिर भी उनके ज्ञान का प्रकाश सर्वत्र फैला। 


वे चर्मकार का कार्य करते थे, व समाज में सदाचार, संस्कार व सद्भावना की अलख जलाने के लिए सत्संग आदि का आयोजन नहीं करते थे । ईश्वर का नाम कहीं भी बैठकर लिया जा सकता है, इसके लिए सत्संग आदि में जाने की जरूरत नहीं है। चर्मकार का कार्य करते हुए भी संत रविदास की आत्मा सीधे ईश्वर से जुड़ी हुई थी। परन्तु आज के जो ज्यादातर संत है वे मदिरापान करते हैं, माँसभक्षी भी हैं, नृत्य, संगीत आदि देखना पसन्द करते हैं । अपनी चमक दमक से जनता को प्रभावित करते हैं। उनके कुकृत्य जिस तरह से जनता के सामने आते हैं, उससे सच्चे संतों की प्रतिष्ठा पर आंच आती है। लोग झूठी मोक्ष प्राप्ति की लालसा में ढोंगी बाबाओं पर धन खर्च करते हैं और ढोंगी बाबा अपनी जरूरतें पूरी करते हैं। 


आज सत्संग तथा ढोंगी बाबाओं के बढ़ते प्रचलन के कारण अनेकों परिवारों में तनाव उत्पन्न हो रहे हैं। रिश्तों में दरार आ रही हैं। वरन सत्संग के मोह में अंधविश्वासी लोग अपनी संतान की ओर भी ध्यान नहीं दे रहे हैं। लोगों को यह समझना चाहिए कि सत्संग को सत्संग ही बने रहने दिया जाये। चूँकि वर्तमान में सत्संग अनेकों परिवारों में लठसंग अर्थात घर में कलह की वजह बनता है तथा परिवार व पतिभंग अर्थात परिवार तबाह होते हैं। अत्यंत अंधविश्वासी सोच जीवन की बर्बादी श का प्रमाण है । 


जीवन उसी का सार्थक है जो जरूरतमंदों के काम आये, अपने परिवार व रिश्तों को सहेजे और सच्ची प्रतिष्ठा वही है, जिससे समस्त प्राणीमात्र को प्रेरणा मिले। चूँकि सबसे ज्यादा कष्टदायक वह है जब कोई अपना पास होकर भी दूरियाँ बना लेता है, वह नहीं जो स्वयं दूर चला जाता है। पुराने विश्व प्रसिद्ध संतों में और आज के संतों में बहुत फर्क है। आज के संत, बाबाओं का क्या सच सामने आता है, क्या हश्र होता है? सभी जानते हैं । 


रविंदास जी के जीवन से जुड़ी पौराणिक कथाऐं हैं। एक बार मीराबाई अपने पिताजी के साथ हरिद्वार गंगा स्नान के लिए जा रही थी, जहाँ रास्ते में उन्हें एक वृद्ध संत रविदास चर्मकार का कार्य करते हुए दिखायी दिये, उस वृद्ध की जर्जर शारीरिक अवस्था को देखकर मीराबाई अत्यन्त भावुक हुई और रविदास को अपना एक हीरा जड़ित कंगन देने लगी। जिससे संत रविदान का जीवन सुख से यापन हो सके, लेकिन रविंदास ने वह कंगन गंगा में फेंक दिया।


 यह देख मीराबाई क्रोधित हो गयी और अपना कंगन वापस मांगने लगी। तभी रविदास ने गंगा मैया से आव्हान किया कि "हे मैया इस राजकुमारी के कंगन वापस कर दो।" तत्पश्चात् रविदास ने चमड़ा गलाने वाले कठौती में हाथ डालकर मीराबाई के कंगन जैसे अनेक कंगनों का ढेर लगा दिया और मीराबाई से कहा कि अपने कंगन पहचानकर ले लो। यह देख मीराबाई आश्चर्यचकित हो गयी और उन्होंने रविदास को अपना गुरू मान लिया । 


इस सन्दर्भ में संत रविदास का कथन प्रचलित है, "मन चंगा तो कठौती में गंगा" सच्चे संत की पहचान अच्छे प्रवचन से नहीं, वरन मन की पवित्रता से होती है और सच्चे संत सदैव के लिए अमर हैं। रविदास उनमें से एक हैं। संसार में सशक्त विचारधारा का सृजन करने वाले महान संत रविदास सन् 1520 ई० को पंचतत्व में विलीन हो गये।


डॉ मुन्नालाल भारतीय 

समाज सेवी

Post a Comment

0 Comments