बुद्ध जयंती पर विशेष।
तथागत गौतम बुद्ध के जीवन में तथा बुद्ध धम्म के प्रवर्तन में सबसे महत्वपूर्ण तथ्य व क्षण है गौतम बुद्ध को बुद्धत्व ज्ञान की प्राप्ति। गौतम बुद्ध बचपन से ही कारुणिक स्वभाव के थे वह यह बिल्कुल भी नहीं देख सकते थे कोई मनुष्य किसी दूसरे मनुष्य के साथ किसी भी प्रकार से अन्याय पूर्ण व्यवहार करें या कोई दुखी रहे। वह जानवरों, कीट, पतंगे व पक्षियों आदि की दुर्दशा से भी विचलित हो जाते थे।
अपने जीवन का कुछ समय इसी प्रकार परिवार के साथ गुजारते हुए उन्होंने गृह त्याग दिया। और स्वयं को बोधगया में एक पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर ध्यान मग्न कर लिया। गौतम बुद्ध के उद्देश्य संसार के सभी दुखों और कष्टों का निराकरण करना था और उनका मत था कि मन सभी अच्छी बुरी चीजों का केंद्र बिंदु है इसलिए मन को ही सबसे पहले सुसंस्कृत करना चाहिए।
जीवन के अच्छे उद्देश्यों को पूर्ण करने के लिए अपने चित्त को एकाग्र तथा दृढ़ संकल्पित रखना चाहिए और मन की नकारात्मक इंद्रियों को वश में करना चाहिए तभी नकारात्मक विचारों व परिस्थितियों पर विजय प्राप्त की जा सकती है। और जीवन को श्रेष्ठता प्रदान की जा सकती है जीवन के सुख और दुख को समझते हुए 34 वर्ष की आयु में वैशाखी पूर्णिमा के दिन गौतम बुद्ध पीपल के वृक्ष के नीचे ध्यानमग्न थे तभी समीपवर्ती गांव की एक सुजाता नामक स्त्री सोने की थाल में गाय के दूध से बनी खीर लेकर आई और अपने नव शिशु की अच्छे जीवन की कामना करते हुए सुजाता ने पीपल के वृक्ष के नीचे ध्यान मग्न गौतम बुद्ध को देवता का अवतार मानते हुए बड़े आदर के साथ खीर भेट की।
गौतम बुद्ध ने वह खीर ग्रहण की उस खीर को ग्रहण करने के पश्चात गौतम बुद्ध को नवीन आशा और दृढ़ संकल्प का मार्ग दिखा और मन के सभी विचारों पर विजय प्राप्त करते हुए गौतम बुद्ध को नवीन ज्ञान की प्राप्ति हुई। बुद्ध की ज्ञान प्राप्ति को सम्मा संबोधि प्राप्ति भी कहा जाता है इसी के आधार पर बुद्ध ने मानव जाति को धर्म व नैतिकता का नवीन मार्ग दिखाया और गौतम बुद्ध ने बुद्धत्व को ग्रहण किया।
भवदीय,
डॉ मुन्नालाल भारतीय (समाज सेवी)
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