बुद्ध पूर्णिमा पर विशेष
विश्व के महान् सर्वजन हिताय सिद्धार्थ (तथागत गौतम बुद्ध)
डॉ मुन्नालाल भारतीय के मतानुसार बुद्ध धम्म संसार के प्रमुख मतों में से एक है बुद्ध धम्म के प्रवर्तक तथागत गौतम बुद्ध हैं। गौतम बुद्ध का जन्म 563 ई. पूर्व में वैशाख पूर्णिमा के दिन लुम्बिनी नामक सुन्दरवन में हुआ था। इनका बचपन का नाम सिद्धार्थ था। सिद्धार्थ बचपन से ही गम्भीर प्रकृति के थे। वे घण्टों एकान्त में बैठकर सांसारिक समस्याओं का चिन्तन किया करते थे।
सांसारिक मोह माया में कभी उनका मन नहीं लगा वे सांसारिक बन्धनों से मुक्त होना चाहते थे यही कारण था कि वह शादी करने व संतान प्राप्ति के बाद भी बुद्ध ऐसे जीवन की तलाश में रहे जो जीवन के वास्तविक सत्य से परिपूर्ण हो अपने ऐसे ही सवालों की तलाश में तथागत ने एक दिन घर का परित्याग कर दिया और परित्याग के बाद मार्ग में उन्होंने मनुष्य की काफी अजीबोगरीब परिस्थितियों को देखा जैसे एक वृद्ध पुरुष जिसकी कमर झुकी हुई थी दांत किटकिटा रहा था और एक लकड़ी के सहारे लड़खड़ाता हुआ चल रहा था यह सब देख कर बुद्ध ने सोचा कि मनुष्य कैसा अज्ञानी है जो युवावस्था पर इतना गर्व करता है और वृद्धावस्था को भूल जाता है।
फिर उन्होंने एक एक रोगी देखा जिसका शरीर ज्वर से जल रहा था और मिट्टी से सना हुआ था उसका ना कोई घर था और ना ही कोई मित्र मृत्यु उसकी ओर भयंकर रूप धारण करके चली आ रही थी यह देखकर सिद्धार्थ ने सोचा कि धिक्कार है ऐसे शरीर पर जिस का विनाश ऐसे रोग द्वारा होता है उसके बाद उन्होंने एक अर्थी देखी जिसके पीछे मृतक के सगे संबंधी रोते हुए चले आ रहे थे तब गौतम बुद्ध ने सोचा ऐसे जीवन का क्या आकर्षण जिसका अंत इतना दुखमय हो। फिर उन्होंने एक सन्यासी देखा जो संसार के बंधनों को त्याग कर मोक्ष प्राप्त करने का कठिन प्रयास कर रहा था सिद्धार्थ सन्यासी जीवन से प्रभावित हुए।
तत्पश्चात गौतम बुद्ध भी एक पीपल के वृक्ष के नीचे समाधि लगा कर बैठ गए और 49 वें दिन गौतम बुद्ध को सत्य का प्रकाश व सर्वोच्च ज्ञान की प्राप्ति हुई इस दिन को ही बुद्ध पुर्णिमा के नाम से जाना जाता है ज्ञान प्राप्ति के बाद बुद्ध का नाम तथागत गौतम बुद्ध हुआ और वह पीपल वृक्ष बोधी वृक्ष कहलाया। बुद्ध ने बुद्ध धम्म का प्रचार प्रसार किया । उन्होंने सदाचार और नैतिकता की शिक्षा दी उनका ध्येय सर्वजन हिताय था बुद्ध ने सफल जीवन हेतु सम्यक मार्ग की शिक्षा दी जैसे सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प, सम्यक वचन, सम्यक कर्म, सम्यक आजीविका, सम्यक प्रयत्न, सम्यक स्मृति, सम्यक समाधि, अहिंसा व अपरिग्रह आदि। उन्होंने हर वर्ग के व्यक्तियों को अपना शिष्य बनाया उनका मानना था कि न कोई मनुष्य जन्म से नीचा होता है और न ही कोई मनुष्य जन्म से ऊंचा होता है मनुष्य अपने कर्मों से नीचा व ऊंचा बनता है।
बुद्ध के अनुसार निब्बान जीवन का महत्वपूर्ण अंग है निब्बान का अर्थ है सदाचार पूर्ण जीवन। तथागत बुद्ध ने निब्बान को मानव जीवन में सर्वश्रेष्ठ स्थान दिया।।
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